10
क्या क्या जड़ी बूटियाँ चुन चुन,
किस विधि से खींची हाला।
कोटि अरुण सा दमक रहा है,
मेरी मदिरा का प्याला।
होठो से लगते ही इसने,
कैसा रंग बदल डाला।
मैं चला थाम मैं चला थाम,
थाम थाम साकी बाला।
11
टूटे जब नियम विधानों के,
दुनियाँ ने शोर मचा डाला।
चीख उठा हर विज्ञ धरा का,
चोटी औ दाढी वाला।
दी अज़ान मस्जिद में जाकर,
पीकर मदिरा का प्याला।
गूँज उठा आमीन फलक पर,
मुस्काती साकी बाला।
12
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर से,
पड़ा मार्ग में था पाला।
पोप पादरी शेख मौलवी,
पंडित ने रोड़ा डाला।
बढ़ते रहे कदम पंथो पर,
मंजिल केवल मधुशाला।
देखे सभी मार्ग में उड़ते,
जैसे रुई का गाला।
13
मचा हुआ हंगामा कैसा,
जोश भरी क्यों मधुशाला।
ईर्ष्या से बढ़ता जाता है,
आगे प्याले से प्याला।
अड़े हुए है पीने वाले,
कम है ध्यान अधिक हाला।
किसको होश अभी कितना है,
समझ गई साकी बाला।
14
घूँट घूँट कब पीता इसको,
अल्ल मस्त पीने वाला।
सागर पान किया करता है,
आगे कर अंजलि प्याला।
न्यौछावर मैं साकी तुझ पर,
बलिहारी तेरी हाला।
पावन एक बूँद से बनती,
नवल नवेली मधुशाला।
15
तेरे नयनो के सागर में,
डूबा ऐसा साकी बाला।
पीने का कुछ होश नही है,
कर में होते मधु प्याला।
कर प्रभावपूर्ण ओ साकी,
मेरी विनती की माला।
या कह दे तेरे इस जग में,
रह ना सके पीने वाला।
16
एक हाथ में अंचल तेरा,
दूजे में मधु का प्याला |
दोनों हाथ भरे हैं मेरे,
किसकी अब फेरूं माला |
झूम रही है स्वर्ण सुराही,
झूम रही है मधुशाला |
साकी बाला झूम रही है,
झूम रहा पीने वाला |
17
आत्मा सिंह सदृश है होती,
मन गज होता मतवाला |
बुद्धि सिंहनी ने मन गज को,
यदि आहार बना डाला |
सफल साधना साधक की है,
खुल जाती है मधुशाला |
कर सोलह श्रृंगार थिरकती,
आती है साकी बाला |
18
कुसुम कलेवर लिए करो में,
सूरा सुराही औ प्याला |
मन हर चितवन से नयनो में,
घूम रही है साकी बाला |
तीक्ष्ण शूल पलको का कोई,
चुभे न उसको बल वाला |
बंद किये आँखे बैठा हूँ,
यथा सुराही में हाला |
Please read Part 1, Part 3, Part 4, Part 5 and Part 6 of मेरा साकी मेरा हाला